दरअसल कुछ ज्योतिषियों ने लोगों को डराकर पैसा ऐंठने के लिए शनि को एक क्रूर ग्रह के रूप स्थापित कर रखा है और उसके ढैय्या तथा साढेसाती का भय दिखाकर ये ज्योतिषी ऐसे लोगों से पैसे ऐंठते रहते हैं। जाने-माने ज्योतिषविद पंडित पंकज मिश्रा जी ने इन पोंगा-पंडितों की पोल खोल करके रख दिया है। आइए जानते हैं उन्ही के शब्दों में शनि की दशा और उसके प्रभाव के बारे में।
कंटक शनि, अष्टम शनि, शनि की साढेसाती और उसका प्रभाव -
कंटक शनि, अष्टम शनि, शनि की साढेसाती, ये शनि का क्रमश: लग्न और चंद्र से, चतुर्थ और अष्टम तथा चन्द्र और उससे द्वितीय तथा द्वादश भाव में गोचर मात्र है, लेकिन सतही ज्योतिष करने वाले व्यक्ति समाज में शनि नामक शब्द का भय दिखाकर लोगों से पैसा कमाते हैं और जनता को उतरोत्तर और विशेषकर संवेदशील महिलाओं को आतंकित करते हैं।
इस सामाजिक कुरीति के विरोध में भारतीय विद्या भवन के प्रांगण में छात्रों द्वारा सैकड़ों कुंडलियों पर इन गोचरों में घटने वाली अनेकानेक घटनाओं पर शोध कार्य किया गया, जिससे निस्कर्ष निकलता है कि शनि का गोचर, मात्र 'घटना के समय का निर्धारण करने में सहायक तो सिद्ध हो सकता है लेकिन जीवन की दिशा, दशाओं से ही निर्धारित होती है।
किसी भी घटना के शुभ-अशुभ होने में ग्रहों की विभिन्न भावों व वर्ग कुण्डलीय तथा राशियों व नक्षत्रों में परस्पर स्थिति, योग तथा दशाक्रम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बारह राशियों, सताईस नक्षत्रों, नौ ग्रहों, बारह भावों व षोडष वर्गों में 5, 59, 872 संयोजन बनते हैं, तो केवल एक गोचर के आधार पर कैसे फलित किया जा सकता है।
यही नही यदि हम कंटक, अष्टम, साढेसाती आदि की बात करें तो इनमें भी बहुत अच्छे परिणाम देखने को मिलते हैं। उदाहरण के तौर पर हम देखें तो पं नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी चरण सिंह, गोर्डन ब्राउन, मोरारजी देसाई इत्यादि कई ऐसे नेताओं ने अपने साढेसाती में ही प्रधान मंत्री का पद पाया है। यही नहीं, सद्दाम हुसैन उच्चाइयों पर पहुँचे जब उनका कंटक शनि चल रहा था।
हमारे माननीय गुरु श्री के. एन. राव जी कहते हैं कि शनि वैराग्य का कारक है वो जब एक चीज से अलग करता है तो दूसरे चीज से जोड़ देता है। उन्ही का उदाहरण लें तो जब 2001 में उनका अष्टम शनि चल रहा था तो उन्होंने यह निर्णय लिया कि वह अपने विधार्थियों से ही पुस्तके लिखवायेंगे। इस प्रकार स्पष्ट है कि शनि ने उन्हें जहाँ पुस्तक लेखन के कार्य से अलग किया तो वहीं उन्हें अपने विधार्मियों से पुस्तके लिखवायी।
अब यदि शनि के गोचर को लेकर हम गणितीय गणना करे तो एक व्यक्ति के जीवन में तीन बार साढ़ेसाती आ सकती है क्योंकि शनि एक चक्र 30 वर्षों में पूरा करता है। इन 30 वर्षों में हर व्यकि साढ़ेसात वर्ष साढ़ेसाती, ढाई- ढाई वर्ष कंटक शनि ( लग्न तथा चंद्र से), ढाई-ढाई वर्ष अष्टम शनि (लग्न एवं चन्द्र से) भोगता है इस प्रकार कुल मिलाकर साढे सत्रह वर्ष हो जाते हैं।
इसका अर्थ तो यह हुआ कि तीस वर्षो में से साढे सत्रह वर्ष 17 1/2 वर्ष प्रत्येक व्यक्ति को कष्ट हीं भोगना चाहिए जो कि किसी भी रूप में सम्भव नहीं है क्योंकि व्यक्ति के जीवन में घटने वाली सभी घटनाएं उसे जीवन में मिलने वाली दशाएं ही निर्धारित करती है, न कि शनि का गोचर।
अत: उपरोक्त उदाहरण से आप सभी को समझ में आ गया होगा कि अकेले शनि की साढेसाती, कंटक शनि या अष्टम शनि का किसी भी व्यक्ति विशेष के जीवन पर बहुत हीं मामूली प्रभाव पड़ता है। इसलिए आप सभी से यही निवेदन करूँगा कि आप लोग ऐसे किसी भी पोंगा पंडित के चक्कर में न पड़ें और हमेशा हनुमान चालिसा तथा सुन्दर काण्ड का पाठ करते रहें। इससे हनुमान जी की कृपा आप पर बरसने लगेगी और आप जीवन में हर मुश्किल परिस्थिति से आसानी निकल जाएंगे।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी हनुमान चालीसा में ये लिखा है -
नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा ||
संकट ते हनुमान छुड़ावे, मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ||
अर्थात हनुमान जी के नाम का निरंतर जाप करते रहने से बड़े से बड़ा रोग भी दूर हो जाता है। आप पर आने वाला संकट चाहे कितना भी भयानक क्यों न हो, हनुमान जी का ध्यान करने से या तो वो संकट टल जाता है या उसकी मारक क्षमता कम हो जाती है। इसलिए प्रेम से बोलिए - जय श्रीराम जय हनुमान||
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