ज्योतिष :- कुछ भ्रांतियां
आज ज्योतिष से जुड़ी कुछ भ्रांतियां समाज में जोर-शोर से फैलाई जा रही हैं और इन भ्रांतियों तथा अंधविश्वासों को बढ़ाने में आज सबसे बड़ा योगदान टीवी चैनलों का है जो अपने टीआरपी बढ़ाने के लिए आधे-अधूरे ज्योतिषियों को बैठाकर उनसे 800 करोड लोगों का भविष्य चंद राशियों को आधार बनाकर 10 मिनट में कहलवा देते हैं। अगर 800 करोड लोगों को 12 राशियों में बाँटे तो 65 करोड लोग एक ही राशि के अंतर्गत आएंगे, जिसके लिए एक ही भविष्यवाणी की जाती है। और ऐसा कैसे संभव हो सकता है कि एक दिन में 65 करोड लोगों के साथ एक ही घटना घटे जबकि प्रत्येक मनुष्य का अंगूठे का निशान तक एक नहीं होता।यह सारे ज्योतिषी, दर्शकों के लिए 'नीम हकीम खतरे जान' जैसे हैं। यदि हम इसे भारत के संदर्भ में देखें तो यहां की जनसंख्या 120 करोड़ से भी अधिक है यानी एक राशि के अंतर्गत लगभग 10 करोड लोग आते हैं जिसके लिए एक ही घटना के घटने की भविष्यवाणी की जाती है। इनकी सारी भविष्यवाणियां केवल गोचर पर आधारित होती हैं। पाश्चात्य देशों में भी ज्योतिष केवल गोचर पर आधारित है। इसलिए आज तक वहां के किसी भी ज्योतिषी के नाम से सफल भविष्यवाणी का कोई उदाहरण नहीं मिलता है।
यूरोप में तो ऐसे पाखंडी ज्योतिषियों के लिए 7 साल की सजा का प्रावधान है और यही नहीं अमेरिका में ज्योतिषियों की भविष्यवाणी को 'मनोरंजन' कहा जाता है क्योंकि जब सफल भविष्यवाणी ही नहीं होगी तो फिर यह सब कुछ मनोरंजन ही बनकर रह जाता है। यही नहीं अमेरिका में ज्योतिष, काउंसलिंग का एक भाग बन गया है। वहां जो भी ज्योतिष करना चाहता है वह काउंसलिंग में डिप्लोमा लेता है और अपने आप को काउंसलर कहता है।
हमने ज्योतिष विद्या को नौ ज्योतिषीय ग्रंथों में जाँचा और परखा जिनके नाम है वृहत पराशर होरा शास्त्र, वृहत जातक, जातक तत्वम्, सर्वांञ चिंतामणि, जातक अलंकार, फलदीपिका, जातक भरणम, सरावली तथा जातक पारिजात। इन्हें देखने के बाद हमने पाया कि मात्र दो ग्रन्थों फलदीपिका तथा जातक भरणम में ही गोचर का उल्लेख है जिससे स्पष्ट हो जाता है कि हमारे सभी ऋषियों तथा विद्वानों ने भी दशा वर्गों और कुंडली में उपस्थित योगों को अधिक महत्व दिया है न कि गोचर को। इसलिए गोचर केवल दशा में दिखने वाली घटनाओं का समय निर्धारण करता है।
हर व्यक्ति के लिए सुख-दुख और लाभ हानि की परिभाषा अलग-अलग है। यह व्यक्ति के सूझबूझ व उसकी इच्छाओं पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए राजीव गांधी को भाई की मृत्यु के बाद बाध्य होकर अपना कार्य छोड़कर राजनीति में आना पड़ा और आगे चलकर वह प्रधानमंत्री बने। अपनी पायलट की नौकरी छोड़ना उनके लिए एक दुखद घटना कहीं जा सकती है परंतु उसके बाद हीं उन्हें राजगद्दी प्राप्त हुई। जिससे पहली घटना का अर्थ ही बदल गया।
जीवन में सुख-दुख के बीच एक संतुलन होना जरूरी है और हर व्यक्ति को सुख-दुख दोनों के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि केवल अच्छे फल ही मिलना संभव नहीं है बुरे फल भी भोगने पड़ते हैं और एक संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। अगर आप परमहंस हैं तो ना सुख है ना दुख। गीता के उपदेश को आप मानते हैं तो वह भी यही कहती है कि सुख-दुख को बराबर समझो।
सुखदु:खे भयक्रोधौ लाभालाभौ भवाभवौ।
यस्य किंचित तनभूत: नतु दैवस्य कर्म तत्।
अर्थात क्या सुख है क्या दु:ख, क्या लाभ है क्या हानि अर्थात सुख-दु:ख, लाभ-हानि, जय-पराजय सब बराबर है। यह जो संतुलित दृष्टिकोण है वह महात्माओं और परमहंसों का है। लेकिन जो संसारी है वह संतुलित दृष्टिकोण के सहारे नहीं चलते हैं और इस संतुलित दृष्टिकोण के सहारे ना चलने के कारण ही उनका मूल्यांकन बदल जाता है।
पहले यह धारणा थी कि बुरा समय आया इसलिए विदेश यात्रा हुई, पर आज हर कोई विदेश जाना चाहता है। समय बदल गया है। समय के परिवर्तन से मूल्यांकन स्थिर नहीं रहता। पोंगा पंडित इस बात का फायदा उठाकर लोगों को हवन तथा पूजाएं बताकर उनका भविष्य बदलने का दावा करते हैं। अगर वह भाग्य बदल सकते तो पहले वह अपना भाग्य बदलते। वह भगवान द्वारा भेजे गए कोई ठेकेदार नहीं है जो किसी के कर्मों के फल से उन्हें मुक्ति दे सकें। ज्योतिष अंधविश्वास नहीं है बल्कि ज्योतिषी अंधविश्वास फैला रहे हैं। ज्योतिष बहुत बड़ा विज्ञान है। यह सब ज्ञानों से भी बड़ा ज्ञान है इसलिए इसे ज्ञान चक्षु भी कहा जाता है।
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